इस अवसर पर स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य जी महाराज ने बताया कि श्राद्ध का वैष्णव परंपरा में विशेष महत्व है। जिस तिथि को हमारे पूर्वज का परलोकगमन होता है, उसी तिथि को पूर्वजों को हविष्य दिया जाता है। इसके अलावा ब्राह्मणों एवं जरूरतमंदों को भोजन एवं दान भी किया जाता है। गुरु महाराज ने बताया कि इस प्रकार श्राद्ध न केवल पूर्वज बल्कि समाज को भी समृद्ध करने का प्रकल्प है।
उन्होंने बताया कि पितृ केवल अपने बच्चों के दिए भविष्य को ही ग्रहण कर पाते हैं। बेशक वह स्वर्ग में रह रहे हों। इसलिए उन्हें भोजन अवश्य देना चाहिए। भोजन पाकर हमारे पितृ हमपर अपनी कृपाएं प्रदान करते हैं जिससे हमें सुख एवं समृद्धि प्राप्त होती है। गौरतलब है कि वर्ष 1989 में यहां श्री सिद्धदाता आश्रम एवं श्री लक्ष्मीनारायण दिव्यधाम, संस्कृत महाविद्यालय और गौशाला का निर्माण कर स्वामी जी ने लाखों लोगों के जीवन में सकारात्मक प्रभाव डाला है।
इस अवसर पर वृंदावन से आए श्री रामानुज संप्रदाय के रंगदेशिक पुरोधा पंडित सुदर्शनाचार्य जी ने श्राद्ध कर्म पूर्ण किया। उन्होंने बताया कि आज विशेष रूप से तृतीय वर्ष का श्राद्ध किया गया। इस श्राद्ध में तीन पीढिय़ों के पिंड को मिलाकर तर्पण किया जाता है। इससे तीन पीढिय़ों के पूर्वजों के मिलान का उल्लेख मिलता है और उन सभी को मुक्ति होती है। आत्मा बार बार जन्म मरण के चक्र से छूट जाती है।
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