Monday 20 April 2020

लॉक डाउन के दौरान आत्मचिंतन व विचारों का मंथन आवश्यक : वी पी बजाज


गुरुग्राम। गुड़गांव इंडस्ट्रियल एसोसिएशन के पूर्व प्रधान एवं प्रमुख उद्योग प्रबंधक श्री बीपी बजाज ने कोरोना वायरस के कारण चल रहे लोक डाउन के दौरान जहां घरों में बने रहने का आह्वान सभी वर्गों से किया है, वहीं श्री बजाज का मानना है कि इस समय अवधि में आत्मचिंतन व विचारों का मंथन काफी आवश्यक है।
 श्री बजाज के अनुसार भौतिकता के इस दौर में जबकि हम दौड़भाग की जिंदगी को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना चुके थे, ऐसे में लॉक डाउन ने यह सिद्ध कर दिया कि वास्तव में वर्तमान प्रणाली (सिस्टम) मानव नहीं, बल्कि प्रकृति ही चला रही है, ऐसे में लॉक डाउन के नाकारात्मक पहलुओं की बजाय साकारात्मक परिणामों पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
 श्री बजाज ने अपने व्यक्तिगत जीवन को सांझा करते हुए बताया कि उन्होंने 31 वर्ष का समय गुड़गांव में व्यतीत किया। एक उद्योग प्रबंधक व जीआइए में प्रधान पद के रूप में कई उपलब्धियों को अर्जित किया और इस अभियान में सुप्रसिद्ध उद्योग प्रबंधक श्री योगेश मुंजाल, श्री सुरेंद्र कपूर, श्री जे के मेहता और श्री जाजू सहित सर्वश्री वीके जैन और उनके पुत्र अनिल जैन, सेठ पूरन चंद, श्री सुभाष गुप्ता, आरके गर्ग, आरके जैन के सहयोग से प्रत्येक समस्या का ना केवल सामना किया बल्कि उन समस्याओं का समाधान भी निकला।
 श्री बजाज का मानना है कि 31 वर्ष के कार्यकाल में समाज, परिवार व स्वयं के लिए कार्य किया और कर्म योग के सिद्धांत को अमल में लाते हुए अपने जीवन को कर्म के प्रति समर्पित कर दिया।
 श्री बजाज लुधियाना और बनारस यूनिवर्सिटी को याद करते हुए कहते हैं कि जीवन का रूप बहुत अधिक मधुर और बहुत अधिक कड़वा कभी नहीं रहा, परंतु जीवन के कई बसंत गुजर जाने उपरांत अब जबकि लॉक डाउन के दौरान वह घर में हैं, ऐसे में कार्यों का चिंतन करते हुए ही विश्लेषण किया जा सकता है कि जीवन की इस भाग दौड़ में हमने क्या खोया और क्या पाया?
 श्री बजाज जोकि अध्यात्म व धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्तित्व हैं, का मानना है कि कोरोना वायरस रूपी महामारी वास्तव में मनुष्य द्वारा ही की गई किसी गलती का परिणाम है और एक दंड के रूप में प्रकृति ने यह वायरस हमारे सामने एक चुनौती के रूप में रख दिया है।
 श्री बजाज का मानना है कि जब व्यक्ति अपने जीवन को प्रकृति के सिद्धांतों से विपरीत जाकर जीने की कोशिश करता है तो उसे इसका खामियाजा भुगतना ही पड़ता है और उनका मानना है कि कोरोना जैसी महामारी भी इसी का एक रूप है।
लाक डाउन के कारण सड़कों पर ट्रैफिक की कमी और उसके परिणाम स्वरूप पर्यावरण में शुद्धता, साफ नीला आसमान, ठंडी हवा इत्यादि पर विचार व्यक्त करते हुए श्री बजाज ने कहा है कि अप्रैल का माह समाप्ति के दौर पर है और ऐसे मौसम में भी हम एयर कंडीशन से अभी तक बचे हुए हैं क्योंकि वातावरण स्वच्छ है, प्रदूषण नहीं है और इन्हीं तथ्यों पर सकारात्मक रूप से हमें विचार करना होगा।
श्री बजाज का विचार है कि मंथन जीवन का सबसे आवश्यक अंग है जब हम मंथन करते हैं तो इसमें अमृत और विष दोनों सामने आते हैं। आपका मानना है कि हमें सकारात्मक ऊर्जा रूपी अमृत को पुनः प्राप्त करने के लिए कार्य करना होगा, जो हमारे, हमारे परिवार, समाज, देश और मानवता के लिए आवश्यक है और उस विष को दूर करना होगा जो इन सभी वर्गों के लिए घातक है। जीवन की वास्तविकता और चकाचौंध में से एक का चुनाव करना होगा और निरंतर ऐसे कार्य करने के लिए स्वयं को और अपने आसपास के लोगों को तैयार व प्रोत्साहित करना होगा जो वास्तव में मानवीय जीवन के लिए आवश्यक है।
श्री बजाज का मानना है कि जब तक मानव प्रकृति के साथ जुड़ा हुआ है, उसका प्रत्येक दिन व जीवन खुशनुमा और बेहतर होगा, परंतु जब वह भौतिकवाद के रूप को अपनाकर इसी प्रकृति से दूर हो जाता है तो प्रकृति अपनी शक्ति का परिचय देने के लिए मानवता के समक्ष कोई ना कोई ऐसी चुनौती खड़ी कर देती हैं, जिससे मानव को तबाही के अलावा कुछ नहीं मिलता और कोरोनावायरस जैसी महामारी भी इसी का एक रूप दिखाई देती हैं।
श्री बजाज का मानना है कि प्रकृति और भौतिकता के बीच चुनाव का परिणाम ही कहा जाएगा कि यूरोपीय देशों पर कोरोनावायरस का प्रभाव काफी भयावह रहा, चुंकि भारत और इसकी जनता आज भी प्रकृति, धर्म, संस्कृति, अध्यात्म और सेवा भाव से जुड़ी हुई हैं, इसलिए यहां कोरोनावायरस का प्रभाव कम देखा जा रहा है।
श्री बजाज का मानना है कि कोरोना संकट के बाद जब हम अपनी दिनचर्या को पुनः आरंभ करेंगे तो हमें विचार करना होगा कि हमने जीवन की कौन सी शैली को अपनाना है, क्योंकि कोरोना वायरस ने हमें यह सीख दी है कि प्रकृति से जुड़कर ही हम उत्थान, प्रगति का मार्ग अपना सकते हैं और प्रकृति से विमुख होकर जो राह है, वह केवल और केवल विनाश की ही होगी।
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