फरीदाबाद।विश्व हीमोफीलिया दिवस पर स्काउट्स और गाइडस ओपन ग्रुप के सहयोग से रक्तदान जागरूकता अभियान चलाया गया। अभियान का संयोजन करते हुए राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय एन एच तीन फरीदाबाद के प्राचार्य रविन्द्र कुमार मनचन्दा ने बताया कि कोरोना वायरस के लॉकडाउन में स्काउट और गाइड ओपन ग्रुप व डी ओ जी सरोज बाला तथा वॉलंटियर्स डोर टू डोर खाना पहुंचाने की सूचियों को तैयार करने में लगे हैं। आज उन्हीं वॉलंटियर्स के साथ मिलकर उन्हें बताया कि
हीमोफीलिया एक आनुवंशिक रोग है जिसमें शरीर के बाहर बहता हुआ रक्त जमता नहीं है। इसके कारण चोट या दुर्घटना में यह जानलेवा साबित होती है क्योंकि रक्त का बहना जल्द ही बंद नहीं होता। रविन्द्र कुमार मनचन्दा ने बताया कि इस रोग का कारण एक रक्त प्रोटीन की कमी होती है, जिसे 'क्लॉटिंग फैक्टर' कहा जाता है। इस फैक्टर की विशेषता यह है कि यह बहते हुए रक्त के थक्के जमाकर उसका बहना रोकता है। यह बीमारी रक्त में थ्राम्बोप्लास्टिन नामक पदार्थ की कमी से होती है। थ्राम्बोप्लास्टिक में खून को शीघ्र थक्का कर देने की क्षमता होती है। खून में इसके न होने से खून का बहना बंद नहीं होता है।इस बीमारी के लक्षण हैं, शरीर में नीले नीले निशानों का बनना, नाक से खून का बहना, आँख के अंदर खून का निकलना तथा जोड़ों की सूजन इत्यादि। जाँच करने पर पता चलता है कि इस रोग में खून के थक्का होने का समय बढ़ जाता है इसलिए बार-बार रुधिर-आधान अर्थात बार बार ट्रांसमिट करना या देते रहना अच्छा होता है।अत्याधिक रक्तस्राव में 100 घन सेंटीमीटर का रुधिर-आधान प्रति 8 घंटे के अंतर पर दिया जाता है। रुधिर आधान का प्रभाव कुछ घंटों तक ही रहता है, कई दिनों तक नहीं रहता। जब तक रक्तस्त्राव पूर्ण रूप से बंद न हो जाय, अथवा नियंत्रण में न आ जाय, रुधिर - आधान क्रिया को आवश्यकता न हो तब भी 100 से 180 घन सेंटीमीटर नूतन प्लाज्मा अथवा हिमतुल्य शीतल प्लाज़्मा दिया जाता है, क्योंकि इसमें पैत्रिक रक्तस्त्राव के सभी विपरीत गुणों का समावेश रहता है। रक्त के थक्का बन जाने के समय में कमी हो जाती है, अथवा वह प्राकृतिक थक्का बनने में लगनेवाली समय के समान हो जाता है। वॉलंटियर्स में एन एच तीन फरीदाबाद के सरकारी स्कूल की गाइड सोनिया, निशा, सीमा के साथ लगभग पंद्रह वॉलंटियर्स ने हीमोफीलिया सहित अन्य थैलेसीमिया बीमारी से ग्रस्त बच्चों व व्यक्तियों के इलाज के लिए पोस्टर द्वारा रक्तदान करने के लिए जागरूक किया। रितेश कुशवाह, सत्यम, विकास, सचिन, राहुल, सरोज बाला डी ओ जी तथा प्राचार्य रविन्द्र कुमार मनचन्दा ने रक्तदान को पारिवारिक परम्परा बनाने की जरूरत पर बल दिया ताकि रक्त के अभाव किसी भी बहुमूल्य जीवन को कोई क्षति ना पहुंचे।
हीमोफीलिया एक आनुवंशिक रोग है जिसमें शरीर के बाहर बहता हुआ रक्त जमता नहीं है। इसके कारण चोट या दुर्घटना में यह जानलेवा साबित होती है क्योंकि रक्त का बहना जल्द ही बंद नहीं होता। रविन्द्र कुमार मनचन्दा ने बताया कि इस रोग का कारण एक रक्त प्रोटीन की कमी होती है, जिसे 'क्लॉटिंग फैक्टर' कहा जाता है। इस फैक्टर की विशेषता यह है कि यह बहते हुए रक्त के थक्के जमाकर उसका बहना रोकता है। यह बीमारी रक्त में थ्राम्बोप्लास्टिन नामक पदार्थ की कमी से होती है। थ्राम्बोप्लास्टिक में खून को शीघ्र थक्का कर देने की क्षमता होती है। खून में इसके न होने से खून का बहना बंद नहीं होता है।इस बीमारी के लक्षण हैं, शरीर में नीले नीले निशानों का बनना, नाक से खून का बहना, आँख के अंदर खून का निकलना तथा जोड़ों की सूजन इत्यादि। जाँच करने पर पता चलता है कि इस रोग में खून के थक्का होने का समय बढ़ जाता है इसलिए बार-बार रुधिर-आधान अर्थात बार बार ट्रांसमिट करना या देते रहना अच्छा होता है।अत्याधिक रक्तस्राव में 100 घन सेंटीमीटर का रुधिर-आधान प्रति 8 घंटे के अंतर पर दिया जाता है। रुधिर आधान का प्रभाव कुछ घंटों तक ही रहता है, कई दिनों तक नहीं रहता। जब तक रक्तस्त्राव पूर्ण रूप से बंद न हो जाय, अथवा नियंत्रण में न आ जाय, रुधिर - आधान क्रिया को आवश्यकता न हो तब भी 100 से 180 घन सेंटीमीटर नूतन प्लाज्मा अथवा हिमतुल्य शीतल प्लाज़्मा दिया जाता है, क्योंकि इसमें पैत्रिक रक्तस्त्राव के सभी विपरीत गुणों का समावेश रहता है। रक्त के थक्का बन जाने के समय में कमी हो जाती है, अथवा वह प्राकृतिक थक्का बनने में लगनेवाली समय के समान हो जाता है। वॉलंटियर्स में एन एच तीन फरीदाबाद के सरकारी स्कूल की गाइड सोनिया, निशा, सीमा के साथ लगभग पंद्रह वॉलंटियर्स ने हीमोफीलिया सहित अन्य थैलेसीमिया बीमारी से ग्रस्त बच्चों व व्यक्तियों के इलाज के लिए पोस्टर द्वारा रक्तदान करने के लिए जागरूक किया। रितेश कुशवाह, सत्यम, विकास, सचिन, राहुल, सरोज बाला डी ओ जी तथा प्राचार्य रविन्द्र कुमार मनचन्दा ने रक्तदान को पारिवारिक परम्परा बनाने की जरूरत पर बल दिया ताकि रक्त के अभाव किसी भी बहुमूल्य जीवन को कोई क्षति ना पहुंचे।
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