नई दिल्ली। केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली की अध्यक्षता में जीएसटी काउंसिल ने यदि केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री शिव प्रसाद शुक्ल की अध्यक्षता वाले मंत्री समूह की बात मान ली तो छोटे उद्योगों को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) रजिस्ट्रेशन से छूट की सीमा मौजूदा 20 लाख रुपये से बढ़ सकती है। इस मंत्री समूह ने एमएसएमई सैक्टर के लिए मौजूदा सीमा बढ़ाने का सुझाव दिया है, परन्तु सीमा तय करने का फैसला जीएसटी काउंसिल पर छोड़ दिया है।
हालांकि यह सिफारिशें पूरी करना आसान नहीं हैं, विशेषज्ञों की माने तो जीएसटी छूट की सीमा बढ़ाने से कई छोटे-छोटे उद्यमों को कानूनी पचड़ों से मुक्ति तो मिल जाएगी, लेकिन इससे टैक्स चोरी की घटनाएं भी बढऩे की आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं।
मंत्रिमंडलीय समिति ने 50 लाख रुपये तक सालाना टर्नओवर वाली सेवा प्रदाता कंपनियों के लिए कंपोजिशन स्कीम को आसान बनाने का प्रस्ताव रखा जिसके तहत 5 प्रतिशत लेवी और और आसान रिटर्न का सुझाव दिया गया। हालांकि, पहले इस प्रस्ताव को इस दलील के साथ खारिज किया जा चुका है कि इसका गलत इस्तेमाल हो सकता है।
गौरतलब है कि अभी कंपोजिशन स्कीम की सुविधा छोटे उत्पादकों और व्यापारियों को उपलब्ध है जिसके लिए कंपोजिशन स्कीम की सीमा 1 करोड़ से बढ़ाकर 1.5 करोड़ रुपये करने का प्रस्ताव रखा गया है। साथ ही कहा गया है कि इन उद्यमों को तिमाही की जगह सालाना रिटर्न भरने की अनुमति दी जाए। हालांकि, इन्हें चालान के साथ तिमाही आधार पर ही टैक्स पेमेंट करने दिया जाए।
उधर, सुशील मोदी की अध्यक्षता वाले मंत्री समूह ने केरल जैसे आपदा के लिए राष्ट्रीय स्तर पर जीएसटी रेट बढ़ाने की जगह संबंधित राज्य/राज्यों को सेस लगाने की छूट देने की वकालत की। हालांकि, उसने सेस लागू करने से पहले जीएसटी काउंसिल से अनुमति लेने की शर्त रखी। यहां यह तथ्य विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि लॉ कमिटी ने भी जीएसटी रजिस्ट्रेशन से छूट का लाभ 40 लाख रुपये तक के टर्नओवर वाली कंपनियों को देने का सुझाव दिया था, जिसका दिल्ली सरकार ने भी समर्थन किया था। बिहार के उप-मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने 50 से 75 लाख रुपये के सालाना टर्नओवर वाले उद्योगों के लिए फ्लैट पेमेंट की सुविधा का प्रस्ताव रखा जो वैल्यु ऐडेड टैक्स (वैट) के तहत प्राप्त थी।
जीएसटी को लेकर एमएसएमई सैक्टर में काफी परेशानियों का दौर चल रहा है, इसका कारण यह है कि कई ऐसे संस्थान हैं जिनका टैक्स तो कम है परन्तु औपचारिकताएं वैसी ही हैं जो बड़ी युनिटों के लिए है। जीएसटी के संबंध में सभी पक्षों का मानना रहा है कि प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जिससे सभी वर्गों को औपचारिकताओं से मुक्ति मिल सके, परन्तु मौजूदा स्थिति इससे विपरीत ही रही है। अब जबकि जीएसटी को लेकर नई सम्भवनाएं बन रही है, ऐसे में देखना यह है कि औपचारिकतओं से छुटकारा कैसे मिलता है, क्योंकि एमएसएमई सैक्टर को राहत इस क्षेत्र के लिए बेहतर होगा परन्तु सरकार के लिए समस्याएं बढ़ेंगी, क्योंकि उसे यह भी देखना होगा कि लाभ वास्तविक लाभार्थी को ही मिले।
हालांकि यह सिफारिशें पूरी करना आसान नहीं हैं, विशेषज्ञों की माने तो जीएसटी छूट की सीमा बढ़ाने से कई छोटे-छोटे उद्यमों को कानूनी पचड़ों से मुक्ति तो मिल जाएगी, लेकिन इससे टैक्स चोरी की घटनाएं भी बढऩे की आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं।
मंत्रिमंडलीय समिति ने 50 लाख रुपये तक सालाना टर्नओवर वाली सेवा प्रदाता कंपनियों के लिए कंपोजिशन स्कीम को आसान बनाने का प्रस्ताव रखा जिसके तहत 5 प्रतिशत लेवी और और आसान रिटर्न का सुझाव दिया गया। हालांकि, पहले इस प्रस्ताव को इस दलील के साथ खारिज किया जा चुका है कि इसका गलत इस्तेमाल हो सकता है।
गौरतलब है कि अभी कंपोजिशन स्कीम की सुविधा छोटे उत्पादकों और व्यापारियों को उपलब्ध है जिसके लिए कंपोजिशन स्कीम की सीमा 1 करोड़ से बढ़ाकर 1.5 करोड़ रुपये करने का प्रस्ताव रखा गया है। साथ ही कहा गया है कि इन उद्यमों को तिमाही की जगह सालाना रिटर्न भरने की अनुमति दी जाए। हालांकि, इन्हें चालान के साथ तिमाही आधार पर ही टैक्स पेमेंट करने दिया जाए।
उधर, सुशील मोदी की अध्यक्षता वाले मंत्री समूह ने केरल जैसे आपदा के लिए राष्ट्रीय स्तर पर जीएसटी रेट बढ़ाने की जगह संबंधित राज्य/राज्यों को सेस लगाने की छूट देने की वकालत की। हालांकि, उसने सेस लागू करने से पहले जीएसटी काउंसिल से अनुमति लेने की शर्त रखी। यहां यह तथ्य विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि लॉ कमिटी ने भी जीएसटी रजिस्ट्रेशन से छूट का लाभ 40 लाख रुपये तक के टर्नओवर वाली कंपनियों को देने का सुझाव दिया था, जिसका दिल्ली सरकार ने भी समर्थन किया था। बिहार के उप-मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने 50 से 75 लाख रुपये के सालाना टर्नओवर वाले उद्योगों के लिए फ्लैट पेमेंट की सुविधा का प्रस्ताव रखा जो वैल्यु ऐडेड टैक्स (वैट) के तहत प्राप्त थी।
जीएसटी को लेकर एमएसएमई सैक्टर में काफी परेशानियों का दौर चल रहा है, इसका कारण यह है कि कई ऐसे संस्थान हैं जिनका टैक्स तो कम है परन्तु औपचारिकताएं वैसी ही हैं जो बड़ी युनिटों के लिए है। जीएसटी के संबंध में सभी पक्षों का मानना रहा है कि प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जिससे सभी वर्गों को औपचारिकताओं से मुक्ति मिल सके, परन्तु मौजूदा स्थिति इससे विपरीत ही रही है। अब जबकि जीएसटी को लेकर नई सम्भवनाएं बन रही है, ऐसे में देखना यह है कि औपचारिकतओं से छुटकारा कैसे मिलता है, क्योंकि एमएसएमई सैक्टर को राहत इस क्षेत्र के लिए बेहतर होगा परन्तु सरकार के लिए समस्याएं बढ़ेंगी, क्योंकि उसे यह भी देखना होगा कि लाभ वास्तविक लाभार्थी को ही मिले।
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