Monday 18 May 2020

चिकित्सक भावना के अनुरूप कोरोना संक्रमित मरीजों की सेवा में जुटी है फरीदाबाद की बेटी कुनिका टांटिया


फरीदाबाद 18 मई। व्यक्ति में सेवा व समर्पण के संस्कार वास्तव में उसे अपनी पिछली पीढ़ी से मिलते हैं और इन्हीं संस्कारों के अनुरूप कार्य करते हुए व्यक्ति अपनी पहचान बनाता है। प्रमुख उद्योग प्रबंधक श्री ओ पी टाटिया की पौत्री तथा श्री मनोज टांटिया की पुत्री सुश्री कुनिका टांटिया फरीदाबाद की वह बेटी है जो कोरोना संकट के इस दौर में अपनी जिम्मेवारी का निर्वाह तत्परता एवं पूर्ण ईमानदारी के साथ करने में जुटी हुई हैं।
रोहतक मेडिकल कॉलेज में पोस्ट ग्रेजुएट कर रही डॉक्टर कुनिका टाटिया पिछले 4 माह से अपने घर से बाहर हैं और रोगियों के उपचार में जुटी हुई है।
डा. कुनिका एनेस्थीसिया की डॉक्टर हैं जब कोरोना वायरस के कारण लाक डाउन आरंभ हुआ तो डॉक्टर कुनिका के पास दो विकल्प थे, पहला यह कि वह वापस अपने घर आ जाती और दूसरा वह सेवा का मार्ग चुनती।
 डॉ कुनिका ने अपने प्रोफेशन के अनुरूप सेवा को ही चुना। सेवा का यह भाव उन्हें अपने परिवार से भी मिला जो औद्योगिक गतिविधियों के साथ-साथ समाजसेवा को प्रमुखता देता रहा है।
 उल्लेखनीय है फरीदाबाद में टाटिया परिवार उन परिवारों में प्रमुख है जो सेवा भाव के लिए अपनी पहचान बनाए हुए हैं राजस्थान एसोसिएशन हो या अन्य सामाजिक संगठन टांटिया परिवार सदैव मानव सेवा व समाज हित के कार्यों में आगे रहा है।
 डॉक्टर कुनिका को भी संभवतया सेवा के यही गुण अपने परिवार से मिले और उन्होंने कोरोना संक्रमण के इस दौर में एक चिकित्सक का धर्म निभाना उचित समझा  और पढ़ाई के दौरान कोरोना संक्रमण मरीजों की सेवा में जुट गई।
 डॉक्टर कुनिका उन चिकित्सकों में से एक हैं जो पीपीई कैट का उपयोग करते हुए मरीजों की सेवा में लगे हुए हैं, प्रतिदिन 8 से 12 घंटे की ड्यूटी के दौरान इन चिकित्सकों को पीपीई किट पहननी पड़ती है और इस हालत में दैनिक नित्य कार्य भी इसलिए निषेध है क्योंकि इससे इंफेक्शन बढ़ने की संभावनाएं बन जाती हैं।
डॉक्टर कुनिका के पिता श्री मनोज टांटिया के अनुसार कुनिका से वीडियो कॉल पर बातचीत तो हो जाती है, परंतु वह वापस अपने घर कब लौटेगी इसका उत्तर ना उनके पास है और ना ही उनकी पुत्री के पास।
आने वाले समय में कोरोनावायरस का संक्रमण क्या रूप लेता है, यह भले भविष्य के गर्भ में है परंतु यह साफ है कि कोरोना वारियर्स की जिम्मेवारी निभाने वाले चिकित्सक अपने परिवारों को छोड़कर सेवा भाव से जुटे हुए हैं और फरीदाबाद की इस बेटी ने सिद्ध कर दिखाया कि वह वास्तव में भारतीय संस्कृति में विश्वास रखती है, जिसमें सेवा को ही परमोधर्म माना जाता है।
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