फरीदाबाद 4 जुलाई। राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय एन एच तीन फरीदाबाद की एस जे ए बी और जे आर सी ने प्राचार्य रविन्द्र कुमार मनचन्दा के मार्गनिर्देशन में स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि पर उन का वंदन कर श्रद्धासुमन अर्पित किए। प्राचार्य रविन्द्र कुमार मनचन्दा ने बताया कि उनका जन्म 1863 में हुआ था। उन का घर का नाम नरेंद्र दत्त था। उनके पिता श्री विश्वनाथ दत्त पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे। वे अपने पुत्र नरेंद्र को भी अंगरेजी पढ़ाकर पाश्चात्य सभ्यता के ढंग पर ही चलाना चाहते थे। नरेंद्र की बुद्धि बचपन से बड़ी तीव्र थी और परमात्मा को पाने की लालसा भी प्रबल थी। इस हेतु वे पहले ब्रह्म समाज में गए किंतु वहाँ उनके चित्त को संतोष नहीं हुआ। सन् 1884 में श्री विश्वनाथ दत्त की मृत्यु हो गई। घर का भार नरेंद्र पर पड़ा। घर की दशा बहुत खराब थी। परन्तु अत्यंत गरीबी में भी नरेंद्र बड़े अतिथि-सेवी थे। स्वयं भूखे रहकर अतिथि को भोजन कराते, स्वयं बाहर वर्षा में रातभर भीगते-ठिठुरते पड़े रहते और अतिथि को अपने बिस्तर पर सुला देते। आपका परिवार धनी, कुलीन और उदारता व विद्वता के लिए विख्यात था। विश्वनाथ दत्त कोलकाता उच्च न्यायालय में अटॉर्नी-एट-लॉ थे और कलकत्ता उच्च न्यायालय में वकालत करते थे। वे एक विचारक, अति उदार, गरीबों के प्रति सहानुभूति रखने वाले, धार्मिक व सामाजिक विषयों में व्यवहारिक और रचनात्मक दृष्टिकोण रखने वाले व्यक्ति थे। प्राचार्य रविन्द्र कुमार मनचन्दा ने कहा कि वर्ष 1902 में आज ही के दिन पश्चिम बंगाल के बेलूर मठ में स्वामी विवेकानंद का ध्यान-मुद्रा में निधन हो गया था, तब उनकी उम्र 39 वर्ष थी। स्वामी विवेकानंद के शिष्यों ने कहा था कि उन्होंने महासमाधि की अवस्था को प्राप्त कर लिया है। स्वामी विवेकानंद ने भारतीय वेद, योग और अध्यात्म को देश-विदेश में पहुंचाया और हिंदू धर्म का पूरी दुनिया में प्रचार-प्रसार किया। प्राचार्य व ब्रिगेड अधिकारी रविन्द्र कुमार मनचन्दा ने बताया कि स्वामी विवेकानंद का जन्म 1863 में आज ही के दिन कोलकाता में हुआ था। स्वामी विवेकानंद भारत की उन महान विभूतियों में से थे जिन्होंने देश और दुनिया को मानवता के कल्याण का मार्ग दिखाया। उनके विचार आज भी प्रासांगिक बने हुए हैं। स्वामी जी के विचार किसी भी व्यक्ति की निराशा को दूर कर सकते हैं। उस में आशा भर सकते हैं। स्वामी जी के कुछ ऐसे ही विचार "उठो और जागो और तब तक रुको नहीं जब तक कि तुम अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर लेते" आज भी प्रासंगिक है और हम सभी को निरंतर अपने पथ पर अग्रसर होने की प्रेरणा देते है। मनचन्दा ने कहा कि स्वामी जी की शिक्षाएं आज भी हमारा मार्गदर्शन करती है उनका कहना था कि आप एक विचार चुनिए और उस विचार को अपना जीवन बना लीजिए। उस विचार के बारे में सोचें और उस विचार के सपने देखें। अपने दिमाग, अपने शरीर के हर अंग को उस विचार से भर लें बाकी सारे विचार छोड़ दें। यही सफलता का रास्ता हैं। विद्यालय की छात्रा ताबिंदा ने स्वामी विवकानन्द जी का चित्र बना कर और उन की अमूल्य शिक्षाओं को दोहराकर श्रद्धांजलि अर्पित की।
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