यह ज्ञापन प्रधान मंत्री के नाम भेजा गया है।
कहा गया है कि पिछले कई वर्षों से देखा जा रहा है कि डॉक्टरों के ऊपर हिंसा की कई वारदात होती रहती है ,मगर इसके खिलाफ कोई भी एक्शन नहीं लिया जाता है।
आई एम ए की मांग है कि एक केंद्रीय कानून बनाया जाना चाहिए जिसके तहत देश के सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में अगर किसी भी प्रकार से डॉक्टर के खिलाफ या नर्सिंग होम या हॉस्पिटल में कोई भी हिंसा होती है तो तुरंत हिंसा करने वालों के खिलाफ केस दर्ज होना चाहिए और यह केस फास्ट ट्रैक कोर्ट में चलाया जाना चाहिए। अस्पतालों को एक सुरक्षित स्थान घोषित किया जाना चाहिए व सुरक्षा के मानक घोषित किये जाने चाहिए ।
डॉ सुरेश अरोड़ा ने बताया कि कोरोना महामारी के दौरान जब कुछ डॉक्टरों के खिलाफ हिंसा की घटनाएं देखी गई तो केंद्रीय सरकार ने एपिडेमिक एक्ट के अंदर कुछ बदलाव करके एक कानून बनाया जिसमें हिंसा करने वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जाएगा, लेकिन यह बदलाव सिर्फ महामारी के दौरान ही लागू रहेगा। हम यह चाहते हैं कि यह कानून हमेशा के लिए लागू रहना चाहिए ताकि सभी डॉक्टर भयमुक्त होकर हमेशा मरीजों का अच्छी तरह से इलाज कर सकें।
उन्होंने आगे बताया कि कुछ राज्यों में यह एक्ट बना कर लागू किया भी गया है, लेकिन इसके बारे में वहां की पुलिस इसको गहन तरीके से नही लेती क्योंकि यह कानून के रूप में नहीं है और सीआरपीसी में नहीं आता है। एक बार यह केंद्रीय कानून बन जाएगा तो यह सीआरपीसी के अधीन आ जाएगा और पूरी पुलिस की जानकारी में आ जाएगा इससे यह पूरी तरह से असरदार होगा।
केंद्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन जी ने इस को कानून बनाने की प्रक्रिया शुरू भी की थी, लेकिन होम मिनिस्ट्री ने इस पर ऑब्जेक्शन लगाकर इसको रोक दिया था। आईएमए ने मांग की कि अब प्रधानमंत्री जी को इसमें दखल देकर इस को जल्द से जल्द लागू करवाना चाहिए।
डॉ पुनीता हसीजा ने बताया कि हिंसा की इन वारदातों को देखते हुए समाज में आगे आने वाले समय में इंटेलिजेंट बच्चों में डॉक्टर बनने की चाहत कम होती जा रही है और इससे समाज का ही अहित है। समाज को अच्छे डॉक्टर नहीं मिलेंगे और अच्छा इलाज नहीं हो पाएगा।
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