फरीदाबाद। देशभर में लोकसभा चुनावों के बाद 23 मई को आने वाले परिणाम किस पार्टी के पक्ष में रहेंगे,यह तो समय ही बताएगा परंतु यह स्पष्ट है कि नई सरकार से उद्योग वर्ग व व्यापारिक जगत को उम्मीदें बनी हुई हैं।
जीएसटी, ऋण प्रक्रिया, ब्याज दर, श्रम कानून ऐसे मुद्दे हैं जिन पर मौजूदा भाजपा सरकार व कांग्रेस दोनों ने अपने-अपने स्तर पर कई उम्मीदें उद्योग वर्ग को दिखाई हैं। जीएसटी लागू होने के बाद यह माना जाता रहा है कि इसमें सुधारों का क्रम जारी रहेगा और सरकार इसमें परिवर्तन व संशोधन पर ध्यान देगी। इस संबंध में गौरतलब सत्य यह है कि सत्तापक्ष व विपक्ष दोनों जीएसटी को लेकर न केवल गंभीर है बल्कि अपने-अपने चुनावी एजेंडें में इसे शामिल भी कर चुके हैं। जहां तक जीएसटी से लाभ या परेशानियों का प्रश्र है चूंकि ढांचा नया है और विस्तारपूर्वक इसके परिणामों पर चर्चाएं हो रही हैं इसलिए माना जा रहा है कि जीएसटी पर आने वाली सरकार गंभीर कदम उठाएगी।
अगला विषय बिजली की उपलब्धता को लेकर है यदि पिछले १० साल में बिजली की उपलब्धता को साल दर साल के आंकलन के साथ देखा जाए तो साफ है उपलब्धता व आपूर्ति में सुधार आया है परंतु अभी भी लाईन फाल्ट के साथ-साथ बिजली की बढ़ती कीमतें एक समस्या बनी हुई है जिसका समाधान राष्ट्रीय स्तर पर नीति तैयार कर ही संभव है।
आधारमूल ढंाचे को लेकर यह आरोप-प्रत्यारोप रहे हैं कि कांग्रेस शासनकाल में जो प्रोजैक्ट बनें उन्हें ही भाजपा शासनकाल में आरंभ किया गया, ऐसे में यह स्पष्ट है कि आने वाली सरकार को इंफ्रास्ट्रक्चर पर विशेष ध्यान देना होगा क्योंकि अब प्रोजैक्ट नये सिरे से बनाए जाने जरूरी हैं और उस पर अमल भी किया जाना समय की मांग है।
श्रमकानूनों को लेकर पिछले कई वर्षों से मांग उठती रही और राजनीतिक दल अपने-अपने स्तर पर आश्वासन भी देते रहे परंतु परिणाम वही ढाक के तीन पात रहा। नई सरकार से उद्योग जगत उम्मीद कर रहा है कि इस मुद्दे पर ध्यान दिया जाएगा और श्रम कानूनों में उदारता के लिये प्रभावी नीति तैयार की जाएगी।
पिछले कार्यकाल में वित्तीय क्षेत्र में एनपीए को लेकर काफी शोर मचा रहा इसका कारण यह है कि बैंकिंग व्यवस्था में कुछ परिवर्तन किये गये और बैंकों को भुगतान २४ घंटे लेट होने की सूरत में पार्टी को एनपीए (नॉन पेमैंट एकाउंट) की कैटागिरी में शामिल कर दिया जाता है हालंकि अंतिम समय में भाजपा सरकार ने इस संबंध में प्रभावी कार्यवाही का आश्वासन दिया परंतु योजना को क्रियान्वित करना जरूरी है, ऐसा कहा जा सकता है।
स्किल इंडिया, मेड इन इंडिया, डिजीटल इंडिया जैसे प्रोजैक्टों को गति देने की उम्मीद नई सरकार से स्पष्ट दिखाई दे रही है। निर्यात के क्षेत्र में ठोस व प्रभावी कदम, रूपये की मजबूती, पेट्रोलियम प्रोडक्टस को सस्ता बनाने की योजना के लिये भी नई सरकार से उम्मीदें बनी हुुई हैं।
आने वाले समय में मतदाता किस अनुपात से किस दल को केंद्र में सरकार सौंपता है यह तो भविष्य ही बताएगा परंतु यह साफ है कि उद्योग, व्यापार, सर्विस सैक्टर व अर्थव्यवस्था से जुड़ा प्रत्येक वर्ग आर्थिक सुधारों को जारी रखना चाहता है और इंसपैक्टरी राज की समाप्ति के साथ-साथ स्टेबल इकोनॉमी को विकसित करने की उम्मीद नई सरकार से रखे हुए है।
जीएसटी, ऋण प्रक्रिया, ब्याज दर, श्रम कानून ऐसे मुद्दे हैं जिन पर मौजूदा भाजपा सरकार व कांग्रेस दोनों ने अपने-अपने स्तर पर कई उम्मीदें उद्योग वर्ग को दिखाई हैं। जीएसटी लागू होने के बाद यह माना जाता रहा है कि इसमें सुधारों का क्रम जारी रहेगा और सरकार इसमें परिवर्तन व संशोधन पर ध्यान देगी। इस संबंध में गौरतलब सत्य यह है कि सत्तापक्ष व विपक्ष दोनों जीएसटी को लेकर न केवल गंभीर है बल्कि अपने-अपने चुनावी एजेंडें में इसे शामिल भी कर चुके हैं। जहां तक जीएसटी से लाभ या परेशानियों का प्रश्र है चूंकि ढांचा नया है और विस्तारपूर्वक इसके परिणामों पर चर्चाएं हो रही हैं इसलिए माना जा रहा है कि जीएसटी पर आने वाली सरकार गंभीर कदम उठाएगी।
अगला विषय बिजली की उपलब्धता को लेकर है यदि पिछले १० साल में बिजली की उपलब्धता को साल दर साल के आंकलन के साथ देखा जाए तो साफ है उपलब्धता व आपूर्ति में सुधार आया है परंतु अभी भी लाईन फाल्ट के साथ-साथ बिजली की बढ़ती कीमतें एक समस्या बनी हुई है जिसका समाधान राष्ट्रीय स्तर पर नीति तैयार कर ही संभव है।
आधारमूल ढंाचे को लेकर यह आरोप-प्रत्यारोप रहे हैं कि कांग्रेस शासनकाल में जो प्रोजैक्ट बनें उन्हें ही भाजपा शासनकाल में आरंभ किया गया, ऐसे में यह स्पष्ट है कि आने वाली सरकार को इंफ्रास्ट्रक्चर पर विशेष ध्यान देना होगा क्योंकि अब प्रोजैक्ट नये सिरे से बनाए जाने जरूरी हैं और उस पर अमल भी किया जाना समय की मांग है।
श्रमकानूनों को लेकर पिछले कई वर्षों से मांग उठती रही और राजनीतिक दल अपने-अपने स्तर पर आश्वासन भी देते रहे परंतु परिणाम वही ढाक के तीन पात रहा। नई सरकार से उद्योग जगत उम्मीद कर रहा है कि इस मुद्दे पर ध्यान दिया जाएगा और श्रम कानूनों में उदारता के लिये प्रभावी नीति तैयार की जाएगी।
पिछले कार्यकाल में वित्तीय क्षेत्र में एनपीए को लेकर काफी शोर मचा रहा इसका कारण यह है कि बैंकिंग व्यवस्था में कुछ परिवर्तन किये गये और बैंकों को भुगतान २४ घंटे लेट होने की सूरत में पार्टी को एनपीए (नॉन पेमैंट एकाउंट) की कैटागिरी में शामिल कर दिया जाता है हालंकि अंतिम समय में भाजपा सरकार ने इस संबंध में प्रभावी कार्यवाही का आश्वासन दिया परंतु योजना को क्रियान्वित करना जरूरी है, ऐसा कहा जा सकता है।
स्किल इंडिया, मेड इन इंडिया, डिजीटल इंडिया जैसे प्रोजैक्टों को गति देने की उम्मीद नई सरकार से स्पष्ट दिखाई दे रही है। निर्यात के क्षेत्र में ठोस व प्रभावी कदम, रूपये की मजबूती, पेट्रोलियम प्रोडक्टस को सस्ता बनाने की योजना के लिये भी नई सरकार से उम्मीदें बनी हुुई हैं।
आने वाले समय में मतदाता किस अनुपात से किस दल को केंद्र में सरकार सौंपता है यह तो भविष्य ही बताएगा परंतु यह साफ है कि उद्योग, व्यापार, सर्विस सैक्टर व अर्थव्यवस्था से जुड़ा प्रत्येक वर्ग आर्थिक सुधारों को जारी रखना चाहता है और इंसपैक्टरी राज की समाप्ति के साथ-साथ स्टेबल इकोनॉमी को विकसित करने की उम्मीद नई सरकार से रखे हुए है।
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